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CG NEWS:छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण किसानों का यह “फैसला” , कर्जमाफी की पेशकश पर भारी पड़ा दो साल का बकाया बोनस ..!

CG NEWS:( गिरिजेय ) “छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की क़रारी हार के साथ ही धान और किसानों का मुद्दा सिरे से ख़ारिज़ नहीं माना जा सकता। अलबत्ता धान और किसानों का मुद्दा ही था, जिसकी वज़ह से बीजेपी को बहुमत हासिल हुआ है और इस चुनाव ने यह भी साबित किया है कि किसानों को दरकिनार कर छत्तीसगढ़ में आगे भी राजनीति करना कठिन होगा। विधानसभा चुनाव में किसानों का मुद्दा भी अहम रहा और किसानों का फैसला भी अहम माना जा सकता है। किसानों ने अपने हिसाब से गणित लगाया। जिसमें उन्हें समझ में आया की कांग्रेस की ओर से की गई कर्ज माफी की पेशकश से अधिक फायदा धान का एक मुस्त दाम और दो साल के बकाया बोनस से मिलेगा। इसके साथ ही प्रति एकड़ 21 क्विंटल की खरीदी पर होने वाला फायदा भी उन्हें समझ में आया। बीजेपी का घोषणा पत्र आने के बाद धान के मामले में किसानों के सामने तराजू एक तरह से बराबरी पर आ गया था। इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार के कामकाज, जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार और दूसरे मुद्दों पर भी गौर किया। जिससे कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है।” किसानों के रुख को समझने वाले लोगों से बात करने पर छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजे को लेकर कुछ ऐसी ही स्थिति सामने आ रही है।

छत्तीसगढ़ के चुनाव में किसानों के रुख़ को समझने के लिए थोड़ा पीछे मुड़कर 2018 के चुनाव तक चलना पड़ेगा। जब कांग्रेस ने 2500  रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीदी का वादा किया। साथ ही कर्ज माफी की भी घोषणा की गई । इन दोनों मुद्दों का किसानों पर व्यापक असर हुआ। तमाम लोग यह मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में 2018 के चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भारी जीत के पीछे यही प्रमुख कारण था। इसके बाद कांग्रेस की सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट मीटिंग में किसानों की कर्ज माफी की और ऐलान के मुताबिक 2500  रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीदी शुरू की। हालांकि इस बीच धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर ही की जाती रही। लेकिन अंतर की रकम बोनस के रूप में किसानों को साल भर में चार किस्तों के जरिए दी जाती रही। इसके लिए भूपेश बघेल सरकार ने राजीव किसान न्याय योजना शुरू की थी। बहरहाल धान और किसानों का मुद्दा छत्तीसगढ़ में 5 साल तक छाया रहा। यही वजह है कि चुनाव आते-आते तक लोगों को लग रहा था कि धान के मुद्दे पर किसान कांग्रेस का फिर साथ देंगे। इस मुद्दे का असर देखकर चुनाव के दौरान भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने हिस्से की फ़सल काटने के लिए धान के खेत में उतरे थे।

इस दौरान धान को लेकर बीजेपी का रुख सामने नहीं आने की वजह से किसानों के सामने भी स्पष्ट स्थिति नहीं थी और बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ताओं के पास भी इस मुद्दे का कोई जवाब नहीं था। इस हालत को भांप कर भाजपा ने धान को लेकर बड़ा ऐलान किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में भाजपा के घोषणा पत्र को मोदी की गारंटी का नाम देकर ऐलान किया कि भाजपा सरकार बनती है तो प्रदेश में 3100 रुपए क्विंटल पर धान की खरीदी होगी  । प्रति एकड़ 21 क्विंटल की धान धान खरीदी जाएगी और किसानों को एक मुस्त पैसा मिलेगा। इसके साथ ही बीजेपी ने 2 साल का बकाया बोनस देने का ऐलान करते हुए 25 दिसंबर की तारीख भी तय कर दी।इसके बाद कांग्रेस ने घोषणा पत्र जारी करते हुए 3200 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी करने का ऐलान किया। एक दिन के अंतर से दो घोषणा पत्र सामने आने के बाद  छत्तीसगढ़ की चुनावी सियासत में नया मोड़ आया। धान और किसान के मुद्दे पर एक तरह से तराजू बैलेंस पर आ गया। धान के मुद्दे पर किसान कैलकुलेटर लेकर हिसाब करने लगे कि किसके घोषणा पत्र में अधिक फायदा नजर आ रहा है। किसानों का रुख समझ पाना राजनीतिक समीक्षकों  और चुनावी पंडितों के लिए भी कठिन था। किसानों के कैलकुलेटर के सामने चुनावी पंडितों का कैलकुलेटर सही गुणा – भाग नहीं लगा पा रहा था ।

आखिर जब नतीजा सामने आया और बीजेपी को 54 सीटों के साथ सरकार बनाने का मौका मिला तो लोगों ने धान और किसान के मुद्दे पर एक बार फिर जोड़- गुणा- भाग लगना शुरू किया। इस बारे में दिलचस्प बात सामने आ रही है कि किसानों ने कांग्रेस की ओर से की गई कर्ज माफी की पेशकश के मुकाबले दो साल के बकाया बोनस पर अधिक भरोसा किया। लोग मानते हैं की कर्ज लेने वाले किसानों की संख्या बोनस से लाभान्वित होने वाले किसानों से काफी कम थी। दूसरी तरफ भले ही भाजपा ने 3100 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीदी का वादा किया। लेकिन किसान को अपने हिसाब में समझ में आया की प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदी होने पर उन्हें कांग्रेस की ओर से की गई 3200 प्रति क्विंटल की पेशकश से अधिक फायदा होने वाला है। उन्होंने बीजेपी के घोषणा पत्र को अधिक पसंद किया। एक बात और है कि बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र को मोदी की गारंटी का नाम दिया था। लोग मानते हैं कि अगर प्रदेश के नेताओं की ओर से यह वादा किया जाता तो शायद लोग भरोसा कम कर पाते। लेकिन नरेंद्र मोदी की गारंटी पर लोगों ने पूरा भरोसा किया। दिलचस्प सीन यह भी है कि दो साल के जिस बकाया बोनस की वज़ह से 2018 में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। उस बोनस को चुकता करने का वादा कर उसने फ़िर से किसानों का भरोसा जीत लिया ।

चुनाव में किसानों के इस फैसले के साथ ही यह बात भी सामने आ रही है कि जब धान के मुद्दे पर तराजू का कांटा  करीब-करीब बैलेंस पर आ गया तो फिर लोगों ने प्रदेश सरकार के कामकाज पर भी गौर किया। जिससे सरकार के स्तर पर एक्साइज़ और कोयला घोटाले जैसे भ्रष्टाचार के मुद्दे भी कांग्रेस पर चिपकने लगे। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर राजस्व विभाग में छोटे-छोटे कामों को लेकर भ्रष्टाचार और लेनदेन की शिकायतों को भी लोगों ने याद किया। जानकार मानते हैं कि खासतौर से किसानों को यह समझ आया कि भले ही प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के बाद उन्हें धान का अधिक दाम मिला । लेकिन दूसरी तरफ राजस्व और दूसरे विभागों में लोकल लेवल पर फैले भ्रष्टाचार की वजह से उनका रूपया दूसरी तरफ चला गया। एक हाथ से फायदा और दूसरे हाथ से नुकसान का यह गणित भी किसानों को पर असर डाला। जिसकी परिणीति कांग्रेस की पराजय के रूप में हुई । जिससे लगता है कि धान और किसान के जिस मुद्दे को चुनाव के काफी पहले से असरदार माना जा रहा था, वह असरदार तो साबित हुआ। लेकिन बीजेपी की चुनावी रणनीति के सामने कांग्रेस  का अति विश्वास टिक नहीं पाया और यह मुद्दा कांग्रेस पर उल्टा पड़ गया। वैसे किसानों का यह मुद्दा 2018 में जिस तरह असरदार था और 2023 में भी जिस तरह उसका असर हुआ है, उसके मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में किसानों को अलग करके राजनीति करना अब कठिन होगा।।

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